लगता नहीं है दिल मिरा उजड़े दयार में

लगता नहीं है दिल मिरा उजड़े दयार में
किस की बनी है आलम ए ना पाएदार में,

इन हसरतों से कह दो कहीं और जा बसें
इतनी जगह कहाँ है दिल ए दाग़दार में,

काँटों को मत निकाल चमन से ओ बाग़बाँ
ये भी गुलों के साथ पले हैं बहार में,

बुलबुल को बाग़बाँ से न सय्याद से गिला
क़िस्मत में क़ैद लिक्खी थी फ़स्ल ए बहार में,

कितना है बद-नसीब ज़फ़र दफ़्न के लिए
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू ए यार में..!!

~बहादुर शाह ज़फ़र

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