क्या दौर था फ़ुर्सतों में बस यही काम होना

क्या दौर था फ़ुर्सतों में बस यही काम होना
आँखों में सूरत तेरी होंठों पर तेरा नाम होना,

हसीं ख़्यालों की दुनिया में बसा कर तुझे
चलते फिरते उठते बैठते तुझ से हम कलाम होना,

तुम्हारी सहर अंगेज़ क़ुर्बत की हसीं क़ैद में
वो शाम से सुबह वो सुबह से शाम होना,

बारहा मुझ से दिल का हाल कहते हुए
मुँह से निकले तेरे जुमलों का वो न तमाम होना,

ये भी सच है कि मुहब्बत में खो जाता है आराम
सुकूं भी देता है पर मुहब्बत में बे आराम होना..!!

~उमरदराज़ मार्थ

चूर था ज़ख़्मों से दिल ज़ख़्मी जिगर भी हो गया

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