कितने अख़बार फ़रोशों को सहाफ़ी लिखा

कितने अख़बार फ़रोशों को सहाफ़ी लिखा
ना मुकम्मल को भी ख़ादिम ने इज़ाफ़ी लिखा,

तू ने भूले से न समझी मेरे जज़्बे की कसक
मैं ने बरसों तेरी आँखों को ग़िलाफ़ी लिखा,

हाथ उठा सकते थे मेरे भी बग़ावत का अलम
मैं ने हर ज़ुल्म के ख़ाने मैं मुआफ़ी लिखा,

इश्क़ की ख़ैर हो अल्लाह कि ना शुक्रों ने
एक अधूरी सी मुलाक़ात को काफ़ी लिखा,

आप दुनिया को समझते रहें सामान ए तरब
मैं ने साँसों को गुनाहों की तलाफ़ी लिखा,

वो ही करता रहा अंदर से मलामत मुझ को
मैं ने जो लफ़्ज़ उसूलों के मुनाफ़ी लिखा,

बेवक़ूफ़ों ने मेरी आबला पाई का इलाज
हँसी आती है कि हमदर्द की साफ़ी लिखा..!!

~शकील जमाली

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