किस को रौशन बना रहे हो तुम

किस को रौशन बना रहे हो तुम
इतना जो बुझते जा रहे हो तुम

लोग पागल बनाए जा चुके हैं
अब नया क्या बना रहे हो तुम

गाँव की झाड़ियाँ बता रही हैं
शहर में गुल खिला रहे हो तुम

एक तो हम उदास हैं उस पर
शाइरों को बुला रहे हो तुम

और किस ने तुम्हें नहीं देखा
और किस के ख़ुदा रहे हो तुम

फूल किस ने क़ुबूल करने हैं
जब तलक मुस्कुरा रहे हो तुम..!!

~मुज़दम ख़ान

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