ख़ुशी देखते हैं न ग़म देखते हैं

ख़ुशी देखते हैं न ग़म देखते हैं
हम अंदाज़ ए अहल ए करम देखते हैं,

हर एक शय में जज़्ब ए तसव्वुर के सदक़े
तुम्हीं को तुम्हारी क़सम देखते हैं,

सबा सुब्ह दम जाने क्या कह गई है
गुलों की भी आँखों को नम देखते हैं,

झुका देते हैं हम जबीन ए अक़ीदत
जहाँ उन का नक़्श ए क़दम देखते हैं,

तेरी चश्म ए मय गूँ के मयख़्वार हैं जो
वो कब जानिब ए जाम ए जम देखते हैं,

ये अहल ए मोहब्बत का तर्ज़ ए नज़र है
सितम में भी रंग ए करम देखते हैं,

तरब जादा पैमा ए उल्फ़त जहाँ में
कहाँ राह के पेच ओ ख़म देखते हैं..!!

~तरब सिद्दीक़ी

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