इश्क़ से अक़्ल का फ़ुक़्दान ख़रीदा हम ने
और वो भी अलल ऐलान ख़रीदा हम ने,
हम ने पत्थर भी ख़रीदा तो वो आईना था
कभी याक़ूत न मरजान ख़रीदा हम ने,
भूलने के लिए वो साअत ए पैमान ए अलस्त
वक़्त से एक नया पैमान ख़रीदा हम ने,
शोर उठा था कि नाबूद हुआ है कोई
जब तेरे वस्ल का अरमान ख़रीदा हम ने,
कितने लम्हात को अपने लिए दुश्वार किया
तब कोई लम्हा ए आसान ख़रीदा हम ने,
बंद होने को दुकाँ है तो ख़याल आया है
फ़ाएदा छोड़ के नुक़्सान ख़रीदा हम ने,
फ़ीस भरने के लिए जेब में पैसे भी न थे
जिन दिनों मीर का दीवान ख़रीदा हम ने..!!
~अजमल सिराज

























