हमें दावा था देखेंगे वो क्यूँकर याद आते हैं
रग ए जाँ बन गए हैं अब फ़ुज़ूँ तर याद आते हैं,
ख़फ़ा तो मुझ से रहते हैं मगर रहते हैं दिल में भी
मैं अक्सर भूलता हूँ और वो अक्सर याद आते हैं,
बुतों की बंदगी है शुक्रिया साने की सनअत का
वो काफ़िर क्यों हुआ जिस को ये दिलबर याद आते हैं,
मेरा माज़ी नज़र आया मुझे हाल ए हसीं हो कर
जो उन के साथ देखे थे वो मंज़र याद आते हैं,
मैं गुलचीं था बहार ए ज़िंदगी के गुल्सितानों का
जो दिन फूलों में बीते थे वो अक्सर याद आते हैं,
नशा उतरा मगर अब भी तुम्हारी मस्त आँखों से
पिए थे जो मय ए उल्फ़त के साग़र याद आते हैं,
दयार ए दूर में मैं तो नहीं आता हूँ याद उन को
न जाने वो मुझे फिर क्यों बराबर याद आते हैं ?
बस अब रहने भी दे सब बे नियाज़ी देख ली तेरी
तुझे अब तो वो हर मज़हर में अज़हर याद आते हैं..!!
~ए. डी. अज़हर

























