हमारे हाल से कोई जो बा ख़बर रहता
ख़याल उसका हमें भी तो उम्र भर रहता,
जिसे भी ख़्वाहिश ए दीवार ओ दर हो सहरा में
वो कम नसीब तो अच्छा था अपने घर रहता,
हवा से टूट के गिरना मेरा मुक़द्दर था
कि ज़र्द पत्ता था क्यूँ कर मैं शाख़ पर रहता ?
जो देखता हूँ ज़माने की ना शनासी को
ये सोचता हूँ कि अच्छा था बे हुनर रहता,
हमारी वज्ह से होती न तेरी रुस्वाई
हमारे साथ अगर तू न इस क़दर रहता,
तज़ाद क़ौल ओ अमल में हो जिस के ऐ नादिर
वो शख़्स कैसे निगाहों में मोतबर रहता..??
~अतहर नादिर

























