हम अपने आप में रहते हैं दम में दम जैसे
हमारे साथ हों दो चार भी जो हम जैसे,
किसे दिमाग़ जुनूँ की मिज़ाज पुर्सी का
सुनेगा कौन गुज़रती है शाम ए ग़म जैसे,
भला हुआ कि तेरा नक़्श ए पा नज़र आया
ख़िरद को रास्ता समझे हुए थे हम जैसे,
मेरी मिसाल तो ऐसी है जैसे ख़्वाब कोई
मेरा वजूद समझ लीजिए अदम जैसे,
अब आप ख़ुद ही बताएँ ये ज़िंदगी क्या है ?
करम भी उस ने किए हैं मगर सितम जैसे..!!
~अजमल सिराज

























