गूँजता है नाला ए महताब आधी रात को

गूँजता है नाला ए महताब आधी रात को
टूट जाते हैं सुहाने ख़्वाब आधी रात को,

भागते सायों की चीख़ें टूटते तारों का शोर
मैं हूँ और एक महशर ए बे ख़्वाब आधी रात को,

शाम ही से बज़्म ए अंजुम नश्शा ए ग़फ़लत में थी
चाँद ने भी पी लिया ज़हराब आधी रात को,

एक शिकस्ता ख़्वाब की कड़ियाँ मिलाने आए हैं
देर से बिछड़े हुए अहबाब आधी रात को,

दौलत ए एहसास ए ग़म की इतनी अर्ज़ानी हुई
नींद सी शय हो गई नायाब आधी रात को..!!

~शकेब जलाली


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