गूंगी हो गई आज कुछ ज़ुबान कहते कहते
हिचकिचा गया मैं ख़ुद को मुसलमान कहते कहते,
ये बात नहीं कि मुझ को रब पर यकीन नहीं
बस डर गया ख़ुद को साहब ए ईमान कहते कहते,
तौफ़ीक न हुई मुझे एक वक़्त की नमाज़ की
जब कि चुप हुआ मुअज़्ज़िन अज़ान कहते कहते,
किसी काफ़िर ने जो पूछा कि ये क्या है महीना
शर्म से पानी हाथ से गिर गया रमज़ान कहते कहते,
मेरी अलमारी में गर्द से अटी किताब का जो पूछा
मैं गड़ ही गया ज़मीन में क़ुरआन कहते कहते,
ये सुन के चुप साध ली इक़बाल उस ने
यूँ लगा जैसे रुक गया वो मुझे हैवान कहते कहते..!!
~अल्लामा इक़बाल