दिल में उठती है मसर्रत की लहर होली में
मस्तियाँ झूमती हैं शाम ओ सहर होली में,
सारे आलम की फ़ज़ा गूँजती है नग़्मों से
कैफ़ ओ मस्ती के बरसते हैं गुहर होली में,
दुश्मन और दोस्त सभी मलते हैं आपस में गुलाल
सारे बेकार हुए तेग़ ओ तबर होली में,
मोहतसिब मस्त है और हज़रत ए वाइज़ सरशार
मयकदा बन गया है ऐश नगर होली में,
किस की मख़मूर निगाहों ने पिलाए साग़र
मस्त ओ बे ख़ुद हुए सब अहल ए नज़र होली में,
आज क्यूपिड भी लिए हाथों में पिचकारी है
उस से बच कर भला जाओगे किधर होली में,
ख़ुम के ख़ुम तू भी लुंढाने की क़सम खा ले आज
देख ज़ाहिद कहीं रखियो न कसर होली में,
तू समझता है कि है तू ही निराला ज़ाहिद
अरे आते हैं यहाँ तेरे ख़ुसर होली में,
कपड़े लत पत किए कीचड़ में चले आते हैं
शैख़ साहब के पिसर लख़्त ए जिगर होली में,
बूढे बूढे भी खड़े तकते हैं लकड़ी टीके
बंद हैं रास्ते और राहगुज़र होली में,
और बस्ती नहीं ये हिन्द है सुन खोल के कान
बच के चलते हैं यहाँ ख़्वाजा ख़िज़र होली में,
मयकदा है यहाँ सामान ए मसर्रत हैं ज़रीफ़’
आ भी जाओ मियाँ बेख़ौफ़ ओ ख़तर होली में..!!
~ज़रीफ़ देहल्वी