दिल किसी का न हुआ एक ख़रीदार के बाद

दिल किसी का न हुआ एक ख़रीदार के बाद
यहाँ लोग बाज़ार लगा लेते हैं बाज़ार के बाद,

क़त्ल कर के भी हमें दिल नहीं भरता उन का
लात भी मारते हैं जिस्म पे तलवार के बाद,

ख़ुद को बदबख़्त कहूँ या मैं कहूँ ख़ुशक़िस्मत
मेरी बीनाई गई है तेरे दीदार के बाद,

शहर ख़ाली न हो ये सोच के हम ख़ाना बदोश
जम हो जाते हैं हर रात को बाज़ार के बाद,

सिर्फ़ पछतावा हुआ है हमें तुझ से मिल कर
कभी गुफ़्तार से पहले कभी गुफ़्तार के बाद..!!

~इब्राहीम अली ज़ीशान

रह रह के याद आती है उस शर्मसार की

Leave a Reply