दरिया कभी एक हाल में बहता न रहेगा

दरिया कभी एक हाल में बहता न रहेगा
रह जाऊँगा मैं और कोई मुझ सा न रहेगा,

आसेब नज़र आते हैं दिन को भी यहाँ पर
इस शहर में अब कोई अकेला न रहेगा,

अच्छा है न देखेंगे न महसूस करेंगे
आँखें न रहेंगी तो तमाशा न रहेगा,

वो ख़ाक उड़ेगी कि न देखी न सुनी हो
दीवाना तो क्या चीज़ है सहरा न रहेगा,

ये अंजुमन आराई है एक रात की मेहमान
ता सुब्ह कोई देखने वाला न रहेगा,

तू कुछ भी हो कब तक तुझे हम याद करेंगे
ता हश्र तो ये दिल भी धड़कता न रहेगा,

क्या क्या नज़र आता था कि मौजूद नहीं है
ये सोच के रोता हूँ कि क्या क्या न रहेगा ?

आख़िर मेरे सीने के भी नासूर भरेंगे
ये बाग़ सदा रंग दिखाता न रहेगा,

हूँ ज़र्रा ए नाचीज़ मुझे कल की नहीं फ़िक्र
मशहूर जो हैं नाम उन्ही का न रहेगा,

शहज़ाद बहुत ख़्वार किया हम सुख़नी ने
कुछ दिन दर ओ दीवार से याराना रहेगा..!!

~शहज़ाद अहमद

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