चौथी शादी कर के मुल्ला जी बहुत शादाँ हुए
अपनी क़िस्मत की बुलंदी देख कर नाज़ाँ हुए,
यूँ जवानों की तरह लाए दुल्हन को साथ में
आ गई हो जैसे सुल्ताना कहीं की हाथ में,
पहले ही दिन सारे घर का जाएज़ा उस ने लिया
अपने शौहर की नज़र का जाएज़ा उस ने लिया,
चार कीलें ख़ास कमरे में नज़र आईं उसे
तीन कीलों पर दुपट्टे भी नज़र आए टँगे,
मुल्ला जी से उस ने पूछा ये दुपट्टे किस के हैं ?
ये है किस किस की निशानी ये अतीए किस के हैं ?
मुल्ला जी ने यूँ दिया उस के सवालों का जवाब
ऐ मेरी प्यारी दुल्हन ऐ आफ़्ताब ओ महताब,
बेगमात ए साबिक़ा जो इस जहाँ से उठ गईं
ये दुपट्टे हैं उन्हीं की यादगार ए दिल नशीं,
जब तुम इस दुनिया से उठ जाओगी ऐ जान ए जहाँ
तब तुम्हारा भी दुपट्टा टाँग दूँगा मैं यहाँ,
बोलीं बेगम मौत के पंजे में शौहर आएगा
अब दुपट्टे का नहीं टोपी का नंबर आएगा..!!
~पॉपुलर मेरठी

























