चराग़ इश्क़ के दिल में जलाए जाते हैं
बड़े ही शौक़ से सदमे उठाए जाते हैं,
उन्हें सुकून मिले एक यही तमन्ना है
अगरचे हम को वो जी भर रुलाए जाते हैं,
फ़रेब उन की अदा और अदा फ़रेब लगे
यक़ीन ए इश्क़ वो फिर भी दिलाए जाते हैं,
भुला दिया है हमें ख़ैर कोई बात नहीं
वो याद आ के मगर क्यों रुलाए जाते हैं ?
ख़ुशी मनाते हैं हर वक़्त दिल के लुटने की
तो अहल ए शौक़ भला क्यों सताए जाते हैं ?
हैं जान मेरी वही हैं अदू वही जाँ के
वो बातें ग़ैर से कर ज़ुल्म ढाए जाते हैं..!!
~इरशाद अज़ीज़

























