ये जो नंग थे ये जो नाम थे मुझे खा गए
ये जो नंग थे ये जो नाम थे मुझे खा गए ये ख़याल ए पुख़्ता जो ख़ाम थे
Hindi Shayari
ये जो नंग थे ये जो नाम थे मुझे खा गए ये ख़याल ए पुख़्ता जो ख़ाम थे
पाबंदियों से अपनी निकलते वो पा न थे सब रास्ते खुले थे मगर हम पे वा न थे,
इस नाज़ इस अंदाज़ से तुम हाए चलो हो रोज़ एक ग़ज़ल हमसे कहलवाए चलो हो, रखना है
मुग़ालता है उरूज ओ ज़वाल थोड़ी है हमारी आँख के शीशे में बाल थोड़ी है, हमारे दिल में
दिल ए नादान की बात थी और कुछ नहीं मुहब्बत स्याह रात थी और कुछ भी नहीं, आसानियों
वो दर्द वो वफ़ा वो मुहब्बत तमाम शुद लिए दिल में तेरे क़ुर्ब की हसरत तमाम शुद, ये
रिहा कर मुझे या सज़ा दे ऐ आदिल कोई तो फ़ैसला तू सुना दे ऐ आदिल, यूँ असीरी
जब भी तुम चाहों मुझे ज़ख्म नया देते रहो बाद में फिर मुझे सहने की दुआ देते रहो,
सौ बार चमन महका सौ बार बहार आई दुनिया की वही रौनक़ दिल की वही तन्हाई, एक लहज़ा
हक़ मेहर कितना होगा बताया नहीं गया शहज़ादियों को बाम पे लाया नहीं गया, कमज़ोर सी हदीस सुना