मिलने का भी आख़िर कोई इम्कान बनाते
मिलने का भी आख़िर कोई इम्कान बनाते मुश्किल थी अगर कोई तो आसान बनाते, रखते कहीं खिड़की कहीं
Hindi Shayari
मिलने का भी आख़िर कोई इम्कान बनाते मुश्किल थी अगर कोई तो आसान बनाते, रखते कहीं खिड़की कहीं
दिल दे कर संगदिल को ज़िन्दगी दुश्वार नहीं करना यूँ हर किसी से अपने इश्क़ का इजहार नहीं
सताते हो तुम मज़लूमों को सताओ मगर ये समझ के ज़रा ज़ुल्म ढहाओ मज़ालिम का लबरेज़ जब जाम
तक़दीर की ग़र्दिश क्या कम थी उस पर ये क़यामत कर बैठे, बेताबी ए दिल जब हद से
पिछले ज़ख़्मों का इज़ाला न ही वहशत करेगा तुझ से वाक़िफ़ हूँ मेरी जाँ तू मोहब्बत करेगा, मैं
अज़ब रिवायत है क़ातिलों का एहतराम करो गुनाह के बोझ से लदे काँधों को सलाम करो, पहचान गर
दर्द की धूप ढले ग़म के ज़माने जाएँ देखिए रूह से कब दाग़ पुराने जाएँ, हम को बस
धोखे पे धोखे इस तरह खाते चले गए हम दुश्मनों को दोस्त बनाते चले गए, हर ज़ख्म ज़िंदगी
अपनों से कोई बात छुपाई नहीं जाती ग़ैरों को कभी दिल की बताई नहीं जाती, लग जाती है
हमारे हाफ़िज़े बेकार हो गए साहिब जवाब और भी दुश्वार हो गए साहिब, उसे भी शौक़ था तस्वीर