मिलने का भी आख़िर कोई इम्कान बनाते

milne ka bhi aakhir koi

मिलने का भी आख़िर कोई इम्कान बनाते मुश्किल थी अगर कोई तो आसान बनाते, रखते कहीं खिड़की कहीं

दिल दे कर संगदिल को…

dil de kar sangdil ko

दिल दे कर संगदिल को ज़िन्दगी दुश्वार नहीं करना यूँ हर किसी से अपने इश्क़ का इजहार नहीं

सताते हो तुम मज़लूमों को सताओ

satate ho tum mazlumon ko

सताते हो तुम मज़लूमों को सताओ मगर ये समझ के ज़रा ज़ुल्म ढहाओ मज़ालिम का लबरेज़ जब जाम

तक़दीर की ग़र्दिश क्या कम थी…

taqdeer ki gardish kya kam thi

तक़दीर की ग़र्दिश क्या कम थी उस पर ये क़यामत कर बैठे, बेताबी ए दिल जब हद से

पिछले ज़ख़्मों का इज़ाला न ही…

pichle zakhmon ka izaala

पिछले ज़ख़्मों का इज़ाला न ही वहशत करेगा तुझ से वाक़िफ़ हूँ मेरी जाँ तू मोहब्बत करेगा, मैं

अज़ब रिवायत है क़ातिलों का एहतराम करो

azab riwayat hai qaatilon ko

अज़ब रिवायत है क़ातिलों का एहतराम करो गुनाह के बोझ से लदे काँधों को सलाम करो, पहचान गर

दर्द की धूप ढले ग़म के ज़माने जाएँ

dard ki dhoop dhale gam ke

दर्द की धूप ढले ग़म के ज़माने जाएँ देखिए रूह से कब दाग़ पुराने जाएँ, हम को बस

धोखे पे धोखे इस तरह खाते चले गए

dhokhe pe dhokhe is tarah

धोखे पे धोखे इस तरह खाते चले गए हम दुश्मनों को दोस्त बनाते चले गए, हर ज़ख्म ज़िंदगी

अपनों से कोई बात छुपाई नहीं जाती

apno se koi baat chhupai nahi jaati

अपनों से कोई बात छुपाई नहीं जाती ग़ैरों को कभी दिल की बताई नहीं जाती, लग जाती है

हमारे हाफ़िज़े बेकार हो गए साहिब

hamaare haafize bekar ho gaye

हमारे हाफ़िज़े बेकार हो गए साहिब जवाब और भी दुश्वार हो गए साहिब, उसे भी शौक़ था तस्वीर