कोई आहट कोई सरगोशी…

koi aahat koi sargoshi sada kuch bhi

कोई आहट कोई सरगोशी सदा कुछ भी नहीं घर में एक बेहिस ख़मोशी के सिवा कुछ भी नहीं,

मत बुरा उसको कहो गरचे वो अच्छा भी नहीं

mat bura usko kaho

मत बुरा उसको कहो गरचे वो अच्छा भी नहीं वो न होता तो ग़ज़ल मैं कभी कहता भी

ज़ख्म ए वाहिद ने जिसे ता उम्र रुलाया हो

zakhm e waahid ne jise

ज़ख्म ए वाहिद ने जिसे ता उम्र रुलाया हो हरगिज़ ना दुखाना दिल जो चोट खाया हो, जिसे

ज़िन्दगानी के काम एक तरफ़

zindagaani ke kaam ek taraf

ज़िन्दगानी के काम एक तरफ़ अक़द का इंतज़ाम एक तरफ़, हां मुहब्बत का नाम एक तरफ़ साज़ो सामां

रिश्तों के जब तार उलझने लगते हैं

rishton ke jab taar uljhane l

रिश्तों के जब तार उलझने लगते हैं आपस में घर बार उलझने लगते हैं, माज़ी की आँखों में

चमन में जब भी सबा को गुलाब पूछते हैं

chaman me jab bhi saba

चमन में जब भी सबा को गुलाब पूछते हैं तुम्हारी आँख का अहवाल ख़्वाब पूछते हैं, कहाँ कहाँ

हरिस दिल ने ज़माना कसीर बेचा है

haris dil ne zamana kaseer

हरिस दिल ने ज़माना कसीर बेचा है किसी ने जिस्म किसी ने ज़मीर बेचा है, नहीं रही बशीरत

असर उसको ज़रा नहीं होता

asar usko zara naho hota

असर उसको ज़रा नहीं होता रंज राहत फिज़ा नहीं होता, बेवफा कहने की शिकायत है तो भी वादा

बुलंद दर्ज़ा है दुनियाँ में माँ बाप का

buland darza hai duniyan me maan baap ka

बुलंद दर्ज़ा है दुनियाँ में माँ बाप का इनके जैसा तो कोई और प्यारा नहीं, इतने एहसान है

शिक़स्त ए ज़र्फ़ को पिंदार ए रिंदाना नहीं कहते

shikast e zarf ko pindaar e

शिक़स्त ए ज़र्फ़ को पिंदार ए रिंदाना नहीं कहते जो मांगे से मिले हम उसको पैमाना नहीं कहते,