इक मसाफ़त पाँव शल करती हुई सी ख़्वाब में

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इक मसाफ़त पाँव शल करती हुई सी ख़्वाब मेंइक सफ़र गहरा मुसलसल ज़र्दी-ए-महताब में, तेज़ है बू-ए-शगूफ़ा हाए

एक नगर के नक़्श भुला दूँ एक नगर ईजाद करूँ…

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एक नगर के नक़्श भुला दूँ एक नगर ईजाद करूँएक तरफ़ ख़ामोशी कर दूँ एक तरफ़ आबाद करूँ,

एक तेज़ तीर था कि लगा और निकल गया

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एक तेज़ तीर था कि लगा और निकल गयामारी जो चीख़ रेल ने जंगल दहल गया, सोया हुआ

ग़ैरों से मिल के ही सही बे-बाक तो हुआ…

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ग़ैरों से मिल के ही सही बे-बाक तो हुआबारे वो शोख़ पहले से चालाक तो हुआ, जी ख़ुश

है शक्ल तेरी गुलाब जैसी, नज़र है तेरी शराब जैसी..

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है शक्ल तेरी गुलाब जैसीनज़र है तेरी शराब जैसी, हवा सहर की है इन दिनों मेंबदलते मौसम के

ग़म की बारिश ने भी तेरे नक़्श को धोया नहीं

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ग़म की बारिश ने भी तेरे नक़्श को धोया नहींतू ने मुझ को खो दिया मैं ने तुझे

उसे कहना मुहब्बत दिल के ताले तोड़ देती है…

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उसे कहना मुहब्बत दिल के ताले तोड़ देती हैउसे कहना मुहब्बत दो दिलो को जोड़ देती है, उसे

कोई तो फूल खिलाए दुआ के लहज़े में…

कोई तो फूल खिलाए

कोई तो फूल खिलाए दुआ के लहज़े मेंअज़ब तरह की घुटन है हवा के लहज़े में, ये वक़्त

ख़बर क्या थी कि ऐसे अज़ाब उतरेंगे…

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ख़बर क्या थी कि ऐसे अज़ाब उतरेंगेजो होंगे बाँझ वो आँखों में ख़्वाब उतरेंगे, सजेंगे ज़िस्म पे कुछ

अपने एहसास से छू कर मुझे संदल कर दो…

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अपने एहसास से छू कर मुझे संदल कर दोमैं कि सदियों से अधूरा हूँ मुकम्मल कर दो, न