क्या मिला और हुआ कितना ख़सारा सोचा
क्या मिला और हुआ कितना ख़सारा सोचा बाद मुद्दत के यही क़िस्सा दोबारा सोचा, रात फिर देर तलक
Gazals
क्या मिला और हुआ कितना ख़सारा सोचा बाद मुद्दत के यही क़िस्सा दोबारा सोचा, रात फिर देर तलक
इश्क़ जब एक मगरूर से हुआ तो फिर छोड़ कर अना ख़ुद को झुकाना पड़ा मुझे, उसने खेला
लरज़ती छत शिकस्ता बाम ओ दर से बात करनी है मुझे तन्हाई में कुछ अपने घर से बात
उदास चाँद खुले पानियों में छोड़ गया वो अपना चेहरा मेरे आँसूओ में छोड़ गया, हवा के झोंके
तेरे फ़िराक़ के लम्हे शुमार करते हुए बिखर गए हैं तेरा इंतिज़ार करते हुए, तुम्हें ख़बर ही नहीं
सोचता हूँ कि उसे नींद भी आती होगी या मेरी तरह फ़क़त अश्क बहाती होगी, वो मेरी शक्ल
समन्दर में उतरता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं तेरी आँखों को पढ़ता हूँ तो आँखें भीग जाती
महफ़िल से मुझको उठाने के बाद क्या मिलेगा दिल दुखाने के बाद, आज तो देख लूँ मैं तुम्हे
अपने हो कर भी जो नहीं मिलते दिल ये जा कर है क्यूँ वही मिलते ? यहाँ मिलती
यूँ बात बात पे कर के मुकालमा मुझसे वो खुल रहा है मुसलसल ज़रा ज़रा मुझसे, मैं शाख