रह के मक्कारों में मक्कार हुई है दुनिया

rah-ke-makkaro-me

रह के मक्कारों में मक्कार हुई है दुनिया मेरे दुश्मन की तरफ़दार हुई है दुनिया, पाक दामन थी

ऐसा अपनापन भी क्या जो अज़नबी महसूस हो

aisa-apnapan-bhi-kya

ऐसा अपनापन भी क्या जो अज़नबी महसूस हो साथ रह कर भी गर मुझे तेरी कमी महसूस हो,

गर्मी ए हसरत ए नाकाम से जल जाते हैं

garmi-e-hasrat-e

गर्मी ए हसरत ए नाकाम से जल जाते हैं हम चराग़ों की तरह शाम से जल जाते हैं,

अज़ाब ए हिज़्र बढ़ा लूँ अगर इजाज़त हो

azab-e-hizr-badha

अज़ाब ए हिज़्र बढ़ा लूँ अगर इजाज़त हो एक और ज़ख्म खा लूँ अगर इजाज़त हो, तुम्हारे आरिज़

एक जाम खनकता जाम कि साक़ी रात गुज़रने वाली है

ek-zaam-khanakta-zaam

एक जाम खनकता जाम कि साक़ी रात गुज़रने वाली है एक होश रुबा इनआ’म कि साक़ी रात गुज़रने

दूर तक छाए थे बादल और कहीं साया न था

door-tak-chhaye-the

दूर तक छाए थे बादल और कहीं साया न था इस तरह बरसात का मौसम कभी आया न

जो हम पे गुज़रे थे रंज़ सारे, जो ख़ुद पे गुज़रे तो लोग समझे

jo-ham-pe-guzre

जो हम पे गुज़रे थे रंज़ सारे, जो ख़ुद पे गुज़रे तो लोग समझे जब अपनी अपनी मुहब्बतों

उम्र भर चलते रहे हम वक़्त की तलवार पर

umr-bhar-chalte-rahe

उम्र भर चलते रहे हम वक़्त की तलवार पर परवरिश पाई है अपने ख़ून ही की धार पर,

जिस तरफ़ चाहूँ पहुँच जाऊँ मसाफ़त कैसी

jis-taraf-chahoon-pahunch

जिस तरफ़ चाहूँ पहुँच जाऊँ मसाफ़त कैसी मैं तो आवाज़ हूँ आवाज़ की हिजरत कैसी ? सुनने वालों

ज़िन्दगी की कशमकश से परेशान बहुत है

zindagi ki kashmakash se pareshan bahut hai

ज़िन्दगी की कशमकश से परेशान बहुत है दिल को न उलझाओ ये नादान बहुत है, यूँ सामने आ