दूर होते हुए क़दमों की ख़बर जाती है
दूर होते हुए क़दमों की ख़बर जाती है ख़ुश्क पत्ते को लिए गर्द ए सफ़र जाती है, पास
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दूर होते हुए क़दमों की ख़बर जाती है ख़ुश्क पत्ते को लिए गर्द ए सफ़र जाती है, पास
उसे बेचैन कर जाऊँगा मैं भी ख़मोशी से गुज़र जाऊँगा मैं भी, मुझे छूने की ख़्वाहिश कौन करता
महफ़िलें लुट गईं जज़्बात ने दम तोड़ दिया साज़ ख़ामोश हैं नग़्मात ने दम तोड़ दिया, हर मसर्रत
ख़्वाब का रिश्ता हक़ीक़त से न जोड़ा जाए आईना है इसे पत्थर से न तोड़ा जाए, अब भी
दुनियाँ में शातिर नहीं अब शरीफ़ लटकते है अब सच्चो की बात छोड़ो वो तो सर पटकते है,
यहाँ मरने की दुआएँ क्यूँ मांगूँ ? यहाँ जीने की तमन्ना कौन करे ? ये दुनियाँ हो या
काम उसके सारे ही सय्याद वाले है मगर मैं उसे बहेलिया नहीं लिखता सर्दियाँ जितनी हो सब सह
अपने घर की चारदीवारी में अब लिहाफ़ में भी सिहरन होती है जिस दिन से किसी को गुर्बत
ज़िस्म क्या है ? रूह तक सब कुछ ख़ुलासा देखिए आप भी इस भीड़ में घुस कर तमाशा
यूँ बेदर्द बन कर ना रहा कीजिए मेरे मर्ज़ की भी तो कोई दवा कीजिए, आप मुहब्बत लिए