कुछ देर का है रोना, कुछ देर की हँसी है
कुछ देर का है रोना, कुछ देर की हँसी है कहीं ठहरती नहीं इसी का नाम ज़िन्दगी है,
Sad Poetry
कुछ देर का है रोना, कुछ देर की हँसी है कहीं ठहरती नहीं इसी का नाम ज़िन्दगी है,
पा सके न सुकूं जो जीते जी वो मर के कहाँ पाएँगे शहर के बेचैन परिंदे फिर लौट
नहीं होती अगर बारिश तो पत्थर हो गए होते ये सारे लहलहाते खेत बंज़र हो गए होते, तेरे
सहर ने अंधी गली की तरफ़ नहीं देखा जिसे तलब थी उसी की तरफ़ नहीं देखा, क़लक़ था
ये जो पल है ये पिछले पल से भी भारी है हमसे पूछो हमने ज़िन्दगी कैसे गुज़ारी है,
हमारे दिल पे जो ज़ख़्मों का बाब लिखा है इसी में वक़्त का सारा हिसाब लिखा है, कुछ
एक मकाँ और बुलंदी पे बनाने न दिया हमको परवाज़ का मौक़ा ही हवा ने न दिया, तू
आँख भर आई किसी से जो मुलाक़ात हुई ख़ुश्क मौसम था मगर टूट के बरसात हुई, दिन भी
मैंने ऐ दिल तुझे सीने से लगाया हुआ है और तू है कि मेरी जान को आया हुआ
शाम अपनी बेमज़ा जाती है रोज़ और सितम ये है कि आ जाती है रोज़, कोई दिन आसाँ