दो चार क्या हैं सारे ज़माने के बावजूद

do chaar kya hai saare zamane ke bawazood

दो चार क्या हैं सारे ज़माने के बावजूद हम मिट नहीं सकेंगे मिटाने के बावजूद, ये राज़ काश

बड़ा बेशर्म ज़ालिम है, बड़ी बेहिस…

bada besharm zalim hai badi behis fitrat hai

बड़ा बेशर्म ज़ालिम है, बड़ी बेहिस फ़ितरत है उसको कहाँ पता हया क्या ? क्या शराफ़त है, हमें

समंदरों में हमारा निशान फैला है

samandaro me hamara nishan faila hai

समंदरों में हमारा निशान फैला है पलट के देख मुए आसमान फैला है, मुक़ाबला है ख़ुराफ़ात का अँधेरों

दुनिया की रिवायात से बेगाना नहीं हूँ

duniya ki riwayat se begana nahi hoon

दुनिया की रिवायात से बेगाना नहीं हूँ छेड़ो न मुझे मैं कोई दीवाना नहीं हूँ, इस कसरत ए

जंग जितनी हो सके दुश्वार होनी चाहिए

jung jitni ho sake dushwar honi chahiye

जंग जितनी हो सके दुश्वार होनी चाहिए जीत हासिल हो तो लज़्ज़तदार होनी चाहिए, एक आशिक़ कल सलामत

जब इक्कीस बरस गुज़रे आज़ादी…

jab ikkis baras guzre azadi e kamil ko

जब इक्कीस बरस गुज़रे आज़ादी ए कामिल को तब जा के कहीं हमको ‘ग़ालिब’ का ख़याल आया, तुर्बत

सूरमाओं को सर ए आम से डर लगता है

soormaaon-ko-sar-e

सूरमाओं को सर ए आम से डर लगता है अब इंक़लाब को अवाम से डर लगता है, हमीं

इलाज ए ज़ख़्म ए दिल होता है ग़मख़्वारी भी होती है

ilaz-e-zakhm-e

इलाज ए ज़ख़्म ए दिल होता है ग़मख़्वारी भी होती है मगर मक़्तल की मेरे ख़ूँ से गुलकारी

दुनियाँ में शातिर नहीं अब शरीफ़ लटकते है

duniyan-me-shatir-nahi

दुनियाँ में शातिर नहीं अब शरीफ़ लटकते है अब सच्चो की बात छोड़ो वो तो सर पटकते है,

रंग ए नफ़रत तेरे दिल से उतरता है कभी ?

rang-e-nafrat-tere

रंग ए नफ़रत तेरे दिल से उतरता है कभी ? एक रवैया है मुरव्वत, उसे बरता है कभी