असर उस को ज़रा नहीं होता
असर उस को ज़रा नहीं होता रंज राहत फ़ज़ा नहीं होता, बेवफ़ा कहने की शिकायत है तो भी
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असर उस को ज़रा नहीं होता रंज राहत फ़ज़ा नहीं होता, बेवफ़ा कहने की शिकायत है तो भी
वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो कि न याद हो वही यानी वादा
, गुलों के रुख़ पे वही ताज़गी का आलम है न जाने उन को ग़म ए रोज़गार क्यूँ
हाल में अपने मगन हो फ़िक्र ए आइंदा न हो ये उसी इंसान से मुमकिन है जो ज़िंदा
कभी अपने इश्क़ पे तब्सिरे कभी तज़्किरे रुख़ ए यार के यूँही बीत जाएँगे ये भी दिन जो
ऐ जुनूँ कुछ तो खुले आख़िर मैं किस मंज़िल में हूँ हूँ जवार ए यार मैं या कूचा
और कोई दम की मेहमाँ है गुज़र जाएगी रात ढलते ढलते आप अपनी मौत मर जाएगी रात, ज़िंदगी
तो क्या ये तय है कि अब उम्र भर नहीं मिलना तो फिर ये उम्र भी क्यों तुम
बता ऐ अब्र मुसावात क्यूँ नहीं करता हमारे गाँव में बरसात क्यूँ नहीं करता ? महाज़ ए इश्क़
बिछड़ कर उसका दिल लग भी गया तो क्या लगेगा वो थक जाएगा और मेरे गले से आ