ख़िरद मंदों से क्या पूछूँ कि मेरी इब्तिदा क्या है
ख़िरद मंदों से क्या पूछूँ कि मेरी इब्तिदा क्या हैकि मैं इस फ़िक्र में रहता हूँ मेरी इंतिहा
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ख़िरद मंदों से क्या पूछूँ कि मेरी इब्तिदा क्या हैकि मैं इस फ़िक्र में रहता हूँ मेरी इंतिहा
तेरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँमेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ, सितम हो कि हो वादा ए बे
सितारों से आगे जहाँ और भी हैंअभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं, तही ज़िंदगी से नहीं ये
लिखना नहीं आता तो मेरी जान पढ़ा करहो जाएगी तेरी मुश्किल आसान पढ़ा कर, पढ़ने के लिए अगर
कुछ दूर हमारे साथ चलोहम दिल की कहानी कह देंगे, समझे न जिसे तुम आँखों सेवो बात ज़ुबानी
वतन से दूर आ कर जो बड़ी दौलत कमाते हैकभी आओ हमें देखो कि गम कितना उठाते है,
यूँ ही हर बात पे हँसने का बहाना आयेफिर वो मासूम सा बचपन का ज़माना आये, काश !
अहल ए उल्फ़त के हवालो पे हँसी आती हैलैला मज़नू की मिसालो पे हँसी आती है, जब भी
ज़ी चाहता है फ़लक पे जाऊँसूरज को गुरूब से बचाऊँ, बस मेरा चले जो गर्दिशो परदिन को भी
अब तो शहरों से ख़बर आती है दीवानों कीकोई पहचान ही बाक़ी नहीं वीरानो की, दिल में वो