क़ुदरत का करिश्मा भी क्या बेमिसाल है
क़ुदरत का करिश्मा भी क्या बेमिसाल है चेहरे सफ़ेद काले पर खून सबका लाल है, हिन्दू है यहाँ
Occassional Poetry
क़ुदरत का करिश्मा भी क्या बेमिसाल है चेहरे सफ़ेद काले पर खून सबका लाल है, हिन्दू है यहाँ
ये क़ुदरत भी अब तबाही की हुई शौक़ीन लगती है ऐ दौर ए ज़दीद साज़िश तेरी बहुत संगीन
बात अब करते है क़तरे भी समंदर की तरह लोग ईमान बदलते है कलेंडर की तरह, कोई मंज़िल
हम प्यास के मारों का इस तरह गुज़ारा है आँखों में नदी लेकिन हाथो में किनारा है, दो
ये दिल टूट न जाए इस बात पर एक तरफ़ा ही ज़ोर लगाया मैंने, मेरे दिल की आवाज़
क्यूँ खौफ़ इस क़दर है तुम्हे हादसात का ? एक दिन ख़ुदा दिखाएगा रास्ता निज़ात का, ये तजरुबा
वो एक लफ़्ज़ जो बेसदा जाएगा वही मुद्दतों तक सुना जाएगा, कोई है जो मेरे तआक़ुब में है
मुक़द्दर ने कहाँ कोई नया पैग़ाम लिखा है अज़ल ही से वरक़ पर दिल के तेरा नाम लिखा
मुझे तन्हाई के ग़म से बचा लेते तो अच्छा था सफ़र में हमसफ़र अपना बना लेते तो अच्छा
सुबह तक मैं सोचता हूँ शाम से जी रहा है कौन मेरे नाम से, शहर में सच बोलता