वो इंसाँ जो शिकार ए गर्दिश ए अय्याम…

wo-insaan-jo-shikar

वो इंसाँ जो शिकार ए गर्दिश ए अय्याम होता है भला करता है दुनिया का मगर बदनाम होता

सूरमाओं को सर ए आम से डर लगता है

soormaaon-ko-sar-e

सूरमाओं को सर ए आम से डर लगता है अब इंक़लाब को अवाम से डर लगता है, हमीं

ज़िक्र उस परीवश का और फिर बयां अपना

ziqr-us-pariwash-ka

ज़िक्र उस परीवश का और फिर बयां अपना बन गया रकीब आख़िर था जो राज़दां अपना, मय वो

दर्द मिन्नत कश ए दवा न हुआ…

dard-minnat-kash-e

दर्द मिन्नत कश ए दवा न हुआ मैं न अच्छा हुआ, बुरा न हुआ, जमा करते हो क्यूँ

यहाँ किसी को आवाज़ कहाँ उठाने…

yahan-kisi-ko-aawaz

यहाँ किसी को आवाज़ कहाँ उठाने देता है कोई ज़रा सी आवाज़ करो तो गला दबा देता है

तेरी हर बात चल कर भी यूँ मेरे जी से आती है

तेरी हर बात चल

तेरी हर बात चल कर भी यूँ मेरे जी से आती है कि जैसे याद की ख़ुशबू किसी

समझे वही इसको जो हो दीवाना…

samjhe-wahi-isko-jo

समझे वही इसको जो हो दीवाना किसी का अकबर ये ग़ज़ल मेरी है अफ़साना किसी का, गर शैख़

कहाँ ले जाऊँ दिल दोनों जहाँ में…

kahan-le-jaaoon-dil

कहाँ ले जाऊँ दिल दोनों जहाँ में इसकी मुश्क़िल है यहाँ परियों का मजमा है, वहाँ हूरों की

ग़ज़लों का हुनर अपनी आँखों को…

gazalon-ka-hunar-apni

ग़ज़लों का हुनर अपनी आँखों को सिखाएँगे रोएँगे बहुत लेकिन आँसू नहीं आएँगे, कह देना समुंदर से हम

ये जो हासिल हमें हर शय की फ़रावानी है

ye-jo-hasil-hame

ये जो हासिल हमें हर शय की फ़रावानी है ये भी तो अपनी जगह एक परेशानी है, ज़िंदगी