दो चार क्या हैं सारे ज़माने के बावजूद
दो चार क्या हैं सारे ज़माने के बावजूद हम मिट नहीं सकेंगे मिटाने के बावजूद, ये राज़ काश
Occassional Poetry
दो चार क्या हैं सारे ज़माने के बावजूद हम मिट नहीं सकेंगे मिटाने के बावजूद, ये राज़ काश
हाल ए दिल सब से छुपाने में मज़ा आता है आप पूछें तो बताने में मज़ा आता है,
बड़ा बेशर्म ज़ालिम है, बड़ी बेहिस फ़ितरत है उसको कहाँ पता हया क्या ? क्या शराफ़त है, हमें
कहीं पड़े न मोहब्बत की मार होली में अदा से प्रेम करो दिल से प्यार होली में, गले
अगर आज भी बोली ठोली न होगी तो होली ठिकाने की होली न होगी, बड़ी गालियाँ देगा फागुन
दिल में उठती है मसर्रत की लहर होली में मस्तियाँ झूमती हैं शाम ओ सहर होली में, सारे
ये नूर उतरेगा आख़िर ग़ुरूर उतरेगा जनाब उतरेगा बंदा हुज़ूर उतरेगा, जो चढ़ गया है वो ऊपर नहीं
तबीब हो के भी दिल की दवा नहीं करते हम अपने ज़ख़्मों से कोई दग़ा नहीं करते, परिंदे
दो चार गाम राह को हमवार देखना फिर हर क़दम पे एक नई दीवार देखना, आँखों की रौशनी
दुनिया की रिवायात से बेगाना नहीं हूँ छेड़ो न मुझे मैं कोई दीवाना नहीं हूँ, इस कसरत ए