दुख दर्द के मारों से मेरा ज़िक्र न करना

dukh dard ke maaron se mera zikr

दुख दर्द के मारों से मेरा ज़िक्र न करना घर जाऊँ तो यारों से मेरा ज़िक्र न करना,

दयार ए नूर में तीरा शबों का साथी हो

dayaar e noor me teera shabo ka

दयार ए नूर में तीरा शबों का साथी हो कोई तो हो जो मेरी वहशतों का साथी हो,

बस्ती भी समुंदर भी बयाबाँ भी मेरा है

basti bhi samndar bhi bayabaan bhi

बस्ती भी समुंदर भी बयाबाँ भी मेरा है आँखें भी मेरी ख़्वाब ए परेशाँ भी मेरा है, जो

अपनी तस्वीर को आँखों से लगाता क्या है

apni tasveer ko aankhon se

अपनी तस्वीर को आँखों से लगाता क्या है एक नज़र मेरी तरफ़ भी तेरा जाता क्या है ?

अहल ए मोहब्बत की मजबूरी बढ़ती जाती है

ahal e mohabbat ki mazburi badhti jati hai

अहल ए मोहब्बत की मजबूरी बढ़ती जाती है मिट्टी से गुलाब की दूरी बढ़ती जाती है, मेहराबों से

अज़ाब ये भी किसी और पर नहीं आया

azaab ye bhi kisi aur pe nahi aaya

अज़ाब ये भी किसी और पर नहीं आया कि एक उम्र चले और घर नहीं आया, उस एक

अज़ाब ए वहशत ए जाँ का सिला न माँगे कोई

azaab e wahshat e jaan ka sila na

अज़ाब ए वहशत ए जाँ का सिला न माँगे कोई नए सफ़र के लिए रास्ता न माँगे कोई,

मज़लूमों के हक़ मे अब आवाज़…

mazlumo ke haq me ab awaz

मज़लूमों के हक़ मे अब आवाज़ उठाये कौन ? जल रही बस्तियाँ,आह ओ सोग मनाये कौन ? कौन

ठीक है ख़ुद को हम बदलते हैं

thik hai khud ko ham badalte hai

ठीक है ख़ुद को हम बदलते हैं शुक्रिया मश्वरत का चलते हैं, हो रहा हूँ मैं किस तरह

ज़ुल्म की हद ए इंतेहा को मिटाने का वक़्त है

zulm ki had e inteha

ज़ुल्म की हद ए इंतेहा को मिटाने का वक़्त है अब मज़लूमों का साथ निभाने का वक़्त है,