शायद मैं ज़िंदगी की सहर ले के आ गया
शायद मैं ज़िंदगी की सहर ले के आ गया क़ातिल को आज अपने ही घर ले के आ
Occassional Poetry
शायद मैं ज़िंदगी की सहर ले के आ गया क़ातिल को आज अपने ही घर ले के आ
किसी रंजिश को हवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी मुझको एहसास दिला दो कि मैं ज़िंदा हूँ
मेरे दुख की कोई दवा न करो मुझको मुझ से अभी जुदा न करो, नाख़ुदा को ख़ुदा कहा
सामने है जो उसे लोग बुरा कहते हैं जिस को देखा ही नहीं उस को ख़ुदा कहते हैं,
कुछ तो दुनिया की इनायात ने दिल तोड़ दिया और कुछ तल्ख़ी ए हालात ने दिल तोड़ दिया,
अगर हम कहें और वो मुस्कुरा दें हम उन के लिए ज़िंदगानी लुटा दें, हर एक मोड़ पर
बूढ़ा टपरा, टूटा छपरा और उस पर बरसातें सच उसने कैसे काटी होगी, लंबी लंबी राते सच ?
इश्क़ में ग़ैरत ए जज़्बात ने रोने न दिया वर्ना क्या बात थी किस बात ने रोने न
सज़ा पे छोड़ दिया कुछ जज़ा पे छोड़ दिया हर एक काम को मैं ने ख़ुदा पे छोड़
तस्वीर तेरी दिल मेरा बहला न सकेगी ये तेरी तरह मुझ से तो शरमा न सकेगी, मैं बात