किसी कमज़ोर की जब भी दुआएँ गूँज उठती है

kisi-kamzor-ki-jab

किसी कमज़ोर की जब भी दुआएँ गूँज उठती है अबाबीलों के लश्कर से फज़ाएँ गूँज उठती है, ख़ामोशी

लेना देना ही क्या फिर ऐसे यारो से ?

lena-dena-hi-kya

लेना देना ही क्या फिर ऐसे यारो से ? सुख दुःख भी जब बाँटने हो दीवारों से, ज़िस्म

जब दुश्मनों के चार सू लश्कर निकल पड़े

jab-dushmano-ke-chaar

जब दुश्मनों के चार सू लश्कर निकल पड़े हम भी कफ़न बाँध के सर पर निकल पड़े, जिन

आपसे किसने कहा स्वर्णिम शिखर बनकर दिखो…

aapse kisne kaha swrnim shikhar ban kar dikho

आपसे किसने कहा स्वर्णिम शिखर बनकर दिखो शौक दिखने का है तो फिर नींव के अंदर दिखो, चल

घर जब बना लिया तेरे दर पर कहे बग़ैर

ghar-jab-bana-liya

घर जब बना लिया तेरे दर पर कहे बग़ैर जानेगा अब भी तू न मेरा घर कहे बग़ैर,

क्या बताते हैं इशारात तुम्हें क्या मा’लूम…

kya batate hai isharaat tumhe kya malum

क्या बताते हैं इशारात तुम्हें क्या मा’लूम कितने मश्कूक हैं हालात तुम्हें क्या मा’लूम ? ये उलझते हुए

ज़िन्दगी से एक दिन मौसम खफ़ा हो जाएँगे…

zindagi se ek din mausam khafa ho jayenge

ज़िन्दगी से एक दिन मौसम खफ़ा हो जाएँगे रंग ए गुल और बू ए गुल दोनों हवा हो

कोई नई चोट फिर से खाओ ! उदास लोगो…

koi nayi chot fir se khaao udas logo

कोई नई चोट फिर से खाओ ! उदास लोगो कहा था किसने कि मुस्कुराओ ! उदास लोगो, गुज़र

जिनके घरो में आज भी चूल्हा नहीं जला…

khana gar ham unko khilaye to eid hai

जिनके घरो में आज भी चूल्हा नहीं जला खाना गर हम उनको खिलाएँ तो ईद है, पानी नहीं

आया ही नहीं कोई बोझ अपना उठाने को…

aaya hi nahi koi bojh apna uthane ko

आया ही नहीं कोई बोझ अपना उठाने को कब तक मैं छुपा रखता इस ख़्वाब ख़ज़ाने को ?