ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल ए यार होता
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल ए यार होता अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता, तेरे
Mirza Ghalib
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल ए यार होता अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता, तेरे
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक, दाम
कोई उम्मीद बर नहीं आती कोई सूरत नज़र नहीं आती, मौत का एक दिन मुअय्यन है नींद क्यूँ
तुम अपने शिकवे की बातें न खोद खोद के पूछो हज़र करो मेंरे दिल से कि इस में
रहिए अब ऐसी जगह चल कर जहाँ कोई न हो हम सुख़न कोई न हो और हम ज़बाँ
इशरत ए क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना,
इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही मेरी वहशत तेरी शोहरत ही सही, क़त्अ कीजे न तअल्लुक़ हम
ग़म ए दुनिया से गर पाई भी फ़ुर्सत सर उठाने की फ़लक का देखना तक़रीब तेरे याद आने
ज़िक्र उस परीवश का और फिर बयां अपना बन गया रकीब आख़िर था जो राज़दां अपना, मय वो
हुस्न ए मह गरचे बहंगाम ए कमाल अच्छा है उससे मेरा मह ए ख़ुर्शीद जमाल अच्छा है, बोसा