हुई न खत्म तेरी रह गुज़ार क्या करते
हुई न खत्म तेरी रह गुज़ार क्या करते तेरे हिसार से ख़ुद को फ़रार क्या करते ? सफ़ीना
Life Poetry
हुई न खत्म तेरी रह गुज़ार क्या करते तेरे हिसार से ख़ुद को फ़रार क्या करते ? सफ़ीना
अल्लाह अगर तौफ़ीक़ न दे इन्सान के बस का काम नहीं फ़ैज़ान ए मोहब्बत आम सही, इर्फ़ान ए
बड़ी क़दीम रिवायत है ये सताने की करो कुछ और ही तदबीर आज़माने की, कभी तो फूट कर
जिसे तुम प्यार समझे थे वो कारोबार था हमदम यहाँ सब अपने मतलब में मुहब्बत साथ रखते है,
जो मिला उससे गुज़ारा न हुआ जो हमारा था, वो हमारा न हुआ, हम किसी और से
मालूम है इस दुनियाँ में मशहूर नहीं है ये गाँव तेरे दिल से तो अब दूर नहीं है,
शाम तक सुबह की नज़रों से उतर जाते है इतने समझौतों पे जीते है कि मर जाते है,
एक वो इतने खूबरू तौबा उसपे छूने की आरज़ू तौबा ! हाथ काँपेंगे रूह मचलेगी जब वो आएँगे
इश्क़ जब एक मगरूर से हुआ तो फिर छोड़ कर अना ख़ुद को झुकाना पड़ा मुझे, उसने खेला
लरज़ती छत शिकस्ता बाम ओ दर से बात करनी है मुझे तन्हाई में कुछ अपने घर से बात