ये चुभन अकेलेपन की, ये लगन उदास शब से…

ye chubhan akelepan ki

ये चुभन अकेलेपन की, ये लगन उदास शब से मैं हवा से लड़ रहा हूँ, तुझे क्या बताऊँ

जिनके घरो में आज भी चूल्हा नहीं जला…

khana gar ham unko khilaye to eid hai

जिनके घरो में आज भी चूल्हा नहीं जला खाना गर हम उनको खिलाएँ तो ईद है, पानी नहीं

आया ही नहीं कोई बोझ अपना उठाने को…

aaya hi nahi koi bojh apna uthane ko

आया ही नहीं कोई बोझ अपना उठाने को कब तक मैं छुपा रखता इस ख़्वाब ख़ज़ाने को ?

अब इस मकाँ में नया कोई दर नहीं करना…

andhera zehan ka samt e safar jab khone lagta hai

अब इस मकाँ में नया कोई दर नहीं करना ये काम सहल बहुत है मगर नहीं करना, ज़रा

छोड़ो अब उस चराग़ का चर्चा बहुत हुआ…

ae dil ye teri zidd mujhe nadaani lagti hai

छोड़ो अब उस चराग़ का चर्चा बहुत हुआ अपना तो सब के हाथों ख़सारा बहुत हुआ, क्या बेसबब

सवाद ए शाम न रंग ए सहर को देखते हैं…

naa mili chhanv kahin yun to kai shazar mile

सवाद ए शाम न रंग ए सहर को देखते हैं बस एक सितारा ए वहशत असर को देखते

लोग कहते थे वो मौसम ही नहीं आने का…

sabz mausam me zard hawa dee usne

लोग कहते थे वो मौसम ही नहीं आने का अब के देखा तो नया रंग है वीराने का,

किसी से क्या कहे सुने अगर गुबार हो गए…

kisi se kya kahe sune agar gubar ho gaye

किसी से क्या कहे सुने अगर गुबार हो गए हम ही हवा की ज़द में थे हम ही

अब वो झोंके कहाँ सबा जैसे आग है शहर की हवा जैसे

ab wo jhonke kahan saba jaise

अब वो झोंके कहाँ सबा जैसे आग है शहर की हवा जैसे, शब सुलगती है दोपहर की तरह

दोस्ती को आम करना चाहता है…

dosti ko aam karna chahta hai wo khud ko neelam karna chahta hai

दोस्ती को आम करना चाहता है ख़ुद को नीलाम करना चाहता है, बेंच आया है घटा के हाथ