कुछ ख़ुद भी थे अफ़सुर्दा से…
कुछ ख़ुद भी थे अफ़सुर्दा से कुछ लोग भी हमसे रूठ गए, कुछ ख़ुद भी ज़ख्म के आदी
Life Poetry
कुछ ख़ुद भी थे अफ़सुर्दा से कुछ लोग भी हमसे रूठ गए, कुछ ख़ुद भी ज़ख्म के आदी
काम इस दिल की तबाही से लिया क्या जाए सोचता हूँ कि ख़राबे में किया क्या जाए ?
इश्क़ सहरा है कि दरियाँ कभी सोचा तुमने तुझसे क्या है मेरा नाता कभी सोचा तुमने ? हाँ
दोस्तों ! आज मैं दिल में छुपे कुछ राज़ बयाँ करता हूँ दुःख से जुड़े ग़ुरबत के दिनों
एक मंज़र यूं नजर आया कि मैं भी डर गया हाथ में रोटी थी जिसके वो भिखारी
वो मुहब्बत गई वो फ़साने गए जो खज़ाने थे अपने खज़ाने गए, चाहतो का वो दिलकश ज़माना गया
दिल जब घबराये तो ख़ुद को एक क़िस्सा सुना देना ज़िन्दगी कितनी भी मुश्किल क्यूँ ना हो मुस्कुरा
तस्वीर का रुख एक नहीं दूसरा भी है खैरात जो देता है वही लूटता भी है, ईमान को
यही कम नहीं है ज़िन्दगी के लिए यहाँ चैन मिल जाए दो घड़ी के लिए, दिल ए ज़ार
जब तलक लगती नहीं है बोलियाँ मेरे पिता तब तलक उठती नहीं है डोलिया मेरे पिता, आज भी