भरोसा कैसे करे कोई अब तिज़ारत के हवालो का ?
भरोसा कैसे करे कोई अब तिज़ारत के हवालो का ? न रहा सत्ता का यकीं हमको, न सत्ता
Life Poetry
भरोसा कैसे करे कोई अब तिज़ारत के हवालो का ? न रहा सत्ता का यकीं हमको, न सत्ता
अपने थके हुए दस्त ए तलब से माँगते है जो माँगते नहीं रब से वो सब से माँगते
जो होने वाला है वो हादसा दिखाई तो दे कोई चराग जलाओ हवा दिखाई तो दे, तेरी गली
हर गम से मुस्कुराने का हौसला मिलता है ये दिल ही तो है जो गिरता और संभलता है,
क्या सरोकार अब किसी से मुझे वास्ता था तो था बस तुझी से मुझे, बेहिसी का भी अब
तर्क ए ग़म गवारा है और न ग़म का यारा है अब तो दिल की हर धड़कन आ’लम
रंगों की आड़ में खुनी खेल, ये इंसानियत क्या जाने ? हरा, भगवा में डूबे हुए केसरिया का
बाद मरने के मेरे किसी केलब पे तो मेरा नाम होगा मातम होगा कहीं, कहीं शहनाइयों का एहतिमाम
वो जो दिल के क़रीब होते है लोग वो भी अज़ीब होते है, पढ़ना लिखना जो जानते न
हम वक़्त ए मौत को तो हरगिज़ टाल न पाएँगे हम ख़ाली हाथ आए है और ख़ाली हाथ