मआल ए अहल ए ज़मीं बर सर ए ज़मीं आता
मआल ए अहल ए ज़मीं बर सर ए ज़मीं आता जो बे यक़ीन हैं उन को भी फिर
Ghazals
मआल ए अहल ए ज़मीं बर सर ए ज़मीं आता जो बे यक़ीन हैं उन को भी फिर
गुज़र गई है अभी साअत ए गुज़िश्ता भी नज़र उठा कि गुज़र जाएगा ये लम्हा भी, बहुत क़रीब
हम पस ए वहम ओ गुमाँ भी देख लेते हैं तुझे देखने वाले यहाँ भी देख लेते हैं
हम अपने आप में रहते हैं दम में दम जैसे हमारे साथ हों दो चार भी जो हम
जो अश्क बरसा रहे हैं साहिब ये राएगाँ जा रहे हैं साहिब, यही तग़य्युर तो ज़िंदगी है अबस
नज़र आ रहे हैं जो तन्हा से हम सो यूँ है कि भर पाए दुनिया से हम, न
ज़मीं पर आसमाँ कब तक रहेगा ये हैरत का मकाँ कब तक रहेगा ? नज़र कब आश्ना ए
जिसके साथ अपनी माँ की दुआएँ होती है उसके मुक़द्दर में जन्नत की हवाएँ होती है, जिसे माँ
जो कहीं ना मिले वो ख़ुशी चाहिए दर्द चाहे कैसा भी हो बंदगी चाहिए, मुझे अब ख्वाहिश ए
एक चेहरे पर रोज़ गुज़ारा होता है प्यार किसी को कब दोबारा होता है मैं तुम पर हर