भूले से किसी और का रस्ता नहीं छूते
भूले से किसी और का रस्ता नहीं छूते अपनी तो हर एक शख़्स से रफ़्तार जुदा है, उस
Ghazals
भूले से किसी और का रस्ता नहीं छूते अपनी तो हर एक शख़्स से रफ़्तार जुदा है, उस
अगर ये ज़िद है कि मुझ से दुआ सलाम न हो तो ऐसी राह से गुज़रो जो राह
मसअला हुस्न ए तख़य्युल का है न इल्हाम का है ये फ़साना ज़रा मुश्किल दिल ए नाकाम का
कहीं दिरहम कहीं डॉलर कहीं दीनार का झगड़ा कहीं लहँगा कहीं चोली कहीं शलवार का झगड़ा, वतन में
मुहताज हमसफ़र की मसाफ़त न थी मेरी सब साथ थे किसी से रिफ़ाक़त न थी मेरी, हक़ किस
एक तेज़ तीर था कि लगा और निकल गयामारी जो चीख़ रेल ने जंगल दहल गया, सोया हुआ
मुहब्बत की झूठी अदाओं पे साहबजवानी लुटाने की कोशिश न करना, बड़े बेमुरौत होते है ये हुस्न वालेकही
मंज़िल पे न पहुँचे उसे रस्ता नहीं कहतेदो चार क़दम चलने को चलना नहीं कहते इक हम हैं
इख़्तियार ए संजीदगीअक्सर जवानी उजाड़ देती है रवानी ए ज़िन्दगी कोवहशत उजाड़ देती है, एक छोटी सी गलती