मुद्दत हुई अपनी आँखों को
मुद्दत हुई अपनी आँखों को क्यों अश्क फ़िशानी याद आई ? क्या दिल ने उन्हें फिर याद किया
Ghazals
मुद्दत हुई अपनी आँखों को क्यों अश्क फ़िशानी याद आई ? क्या दिल ने उन्हें फिर याद किया
जश्न ए ग़म हा ए दिल मनाता हूँ चोट खाता हूँ मुस्कुराता हूँ, हादसों से गुज़रता जाता हूँ
हम बिछड़ के तुम से बादल की तरह रोते रहे थक गए तो ख़्वाब की दहलीज़ पर सोते
दिल के तातार में यादों के अब आहू भी नहीं आईना माँगे जो हम से वो परी रू
ज़माने में कहीं दिल को लगाना भी ज़रूरी था ग़लत कुछ भी नहीं लेकिन छुपाना भी ज़रूरी था,
ज़िक्र होता है उस परी वश का जब भी महफ़िल में बात होती है, उस की यादों की
ज़िंदगी भी अजब तमाशा है कभी आशा कभी निराशा है, जिस में करती हैं गुफ़्तुगू आँखें वो मोहब्बत
तड़प रहा है दिल ए बे क़रार आ जाओ बस एक बार ऐ जान ए बहार आ जाओ,
जब भी ख़ल्वत में मेरी शम्अ जली शाम के बाद दिल के दरवाज़े पे दस्तक सी हुई शाम
पोशीदा सब की आँख से दिल की किताब रख मुमकिन हो गर तो ज़ख़्म के बदले गुलाब रख,