अब छत पे कोई चाँद टहलता ही नहीं है
अब छत पे कोई चाँद टहलता ही नहीं है दिल मेरा मगर पहलू बदलता ही नहीं है, कब
Ghazals
अब छत पे कोई चाँद टहलता ही नहीं है दिल मेरा मगर पहलू बदलता ही नहीं है, कब
मैं जिस जगह भी रहूँगा वहीं पे आएगा मेरा सितारा किसी दिन ज़मीं पे आएगा, लकीर खींच के
सड़क पे दौड़ते महताब देख लेता हूँ मैं चलता फिरता हुआ ख़्वाब देख लेता हूँ, मेरी नज़र से
कभी कभी कितना नुक़सान उठाना पड़ता है ऐरों ग़ैरों का एहसान उठाना पड़ता है, टेढ़े मेढ़े रस्तों पर
जल बुझा हूँ मैं मगर सारा जहाँ ताक में है कोई तासीर तो मौजूद मेरी ख़ाक में है,
ज़रा सी धूप ज़रा सी नमी के आने से मैं जी उठा हूँ ज़रा ताज़गी के आने से,
तेरे ख़याल को ज़ंजीर करता रहता हूँ मैं अपने ख़्वाब की ताबीर करता रहता हूँ, तमाम रंग अधूरे
देख रहा है दरिया भी हैरानी से मैं ने कैसे पार किया आसानी से, नदी किनारे पहरों बैठा
क्यूँ आँखें बंद कर के रस्ते में चल रहा हूँ क्या मैं भी रफ़्ता रफ़्ता पत्थर में ढल
थपक थपक के जिन्हें हम सुलाते रहते हैं वो ख़्वाब हम को हमेशा जगाते रहते हैं, उमीदें जागती