हर सम्त परेशाँ तिरी आमद के क़रीने
हर सम्त परेशाँ तिरी आमद के क़रीने धोके दिए क्या क्या हमें बाद ए सहरी ने, हर मंजिल
Gazals
हर सम्त परेशाँ तिरी आमद के क़रीने धोके दिए क्या क्या हमें बाद ए सहरी ने, हर मंजिल
हम पर तुम्हारी चाह का इल्ज़ाम ही तो है दुश्नाम तो नहीं है ये इकराम ही तो है,
हम सादा ही ऐसे थे की यूँ ही पज़ीराई जिस बार ख़िज़ाँ आई समझे कि बहार आई, आशोब
गो सब को बहम साग़र ओ बादा तो नहीं था ये शहर उदास इतना ज़ियादा तो नहीं था,
सितम की रस्में बहुत थीं लेकिन न थी तिरी अंजुमन से पहले सज़ा ख़ता ए नज़र से पहले
सोच बदल जाती है,हालात बदल जाते हैं वक्त के साथ,लोगो के ख्यालात बदल जाते हैं, इस तरह चेहरे
उजड़े हुए हड़प्पा के आसार की तरह ज़िन्दा हैं लोग वक़्त की रफ़्तार की तरह, क्या रहना ऐसे
निगाह ए यार के बदलने में कुछ देर नहीं लगती हसीं ख़्वाबों के जलने में कुछ देर नहीं
मैं अभी देख के आया हूँ हरे जंगल को सब्ज़ पेड़ों में भी वीरानी बहुत होती है, उन
वफ़ा की आरज़ू करना, सफ़र की जुस्तजू करना जो तुम मायूस हो जाओ, तो रब से गुफ़्तगू करना,