कोई उम्मीद बर नहीं आती
कोई उम्मीद बर नहीं आती कोई सूरत नज़र नहीं आती, मौत का एक दिन मुअय्यन है नींद क्यूँ
Gazals
कोई उम्मीद बर नहीं आती कोई सूरत नज़र नहीं आती, मौत का एक दिन मुअय्यन है नींद क्यूँ
तुम अपने शिकवे की बातें न खोद खोद के पूछो हज़र करो मेंरे दिल से कि इस में
रहिए अब ऐसी जगह चल कर जहाँ कोई न हो हम सुख़न कोई न हो और हम ज़बाँ
इशरत ए क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना,
इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही मेरी वहशत तेरी शोहरत ही सही, क़त्अ कीजे न तअल्लुक़ हम
ग़म ए दुनिया से गर पाई भी फ़ुर्सत सर उठाने की फ़लक का देखना तक़रीब तेरे याद आने
लिख लिख के आँसुओं से दीवान कर लिया है अपने सुख़न को अपनी पहचान कर लिया है, आख़िर
न घर है कोई, न सामान कुछ रहा बाक़ी नहीं है कोई भी दुनिया में सिलसिला बाक़ी, ये
हर्फ़ ए ताज़ा नई ख़ुशबू में लिखा चाहता है बाब एक और मोहब्बत का खुला चाहता है, एक
हम ने ही लौटने का इरादा नहीं किया उसने भी भूल जाने का वादा नहीं किया, दुख ओढ़ते