चलो ये इश्क़ नहीं चाहने की आदत है

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चलो ये इश्क़ नहीं चाहने की आदत हैकि क्या करें हमें दू्सरे की आदत है, तू अपनी शीशा-गरी

बहार रुत में उजाड़ रस्ते…

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बहार रुत में उजाड़ रस्तेतका करोगे तो रो पड़ोगे, किसे से मिलने को जब भीसजा करोगे तो रो

किसी के इश्क़ में रस्तों की धूल हो गए हैं…

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किसी के इश्क़ में रस्तों की धूल हो गए हैंख़ुदा का शुक्र कि पैसे वसूल हो गए हैं,

धमाल धूल उड़ाए तो इश्क़ होता है…

धमाल धूल उड़ाए तो

धमाल धूल उड़ाए तो इश्क़ होता हैवज़ूद वज्द में आये तो इश्क़ होता है, बहा रहा है वो

इश्क़ ज़न्नत इश्क़ दोज़ख इश्क़ तो मशहूर है…

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इश्क़ ज़न्नत इश्क़ दोज़ख इश्क़ तो मशहूर हैइश्क़ जंगल इश्क़ मंगल इश्क़ तो मसरूर है, इश्क़ मुज़रिम इश्क़

हिसार-ए-दीद में रोईदगी मालूम होती है…

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हिसार-ए-दीद में रोईदगी मालूम होती हैतो क्यूँ अंदेशा-ए-तिश्ना-लबी मालूम होती है, तुम्हारी गुफ़्तुगू से आस की ख़ुश्बू छलकती

हर एक दर्द मुहब्बत के नाम होता है…

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हर एक दर्द मुहब्बत के नाम होता हैयही तमाशा मगर सुबह ओ शाम होता है, कही भी मिलता

मतलब परस्तो को क्या पता कि दोस्ती क्या है

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मतलब परस्तो को क्या पता कि दोस्ती क्या हैगुज़र गई है जो मुश्किलो में वो ज़िन्दगी क्या है,

मुक़द्दर का चमकता सितारा हो भी सकता है…

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मुक़द्दर का चमकता सितारा हो भी सकता हैमुझे तक़दीर का शायद इशारा हो भी सकता है, मिलावट झूठ

एक मैं और इतने लाखों सिलसिलों के सामने

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एक मैं और इतने लाखों सिलसिलों के सामनेएक सौत-ए-गुंग जैसे गुम्बदों के सामने, मिटते जाते नक़्श दूद-ए-दम की