बे सोज़ ए निहाँ महव ए फ़ुग़ाँ हो नहीं सकता

बे सोज़ ए निहाँ महव ए फ़ुग़ाँ हो नहीं सकता
जब तक न लगे आग धुआँ हो नहीं सकता,

वादे को निभाएँगे ये वादा है हमारा
क़ौल अपना कभी तेरी ज़बाँ हो नहीं सकता,

हैं सैंकड़ों दिल ताजमहल आज भी लेकिन
नज़्ज़ारा तुझे शाह ए जहाँ हो नहीं सकता,

आँखें ही नहीं क़ाबिल ए दीदार वगर्ना
उस यार का दीदार कहाँ हो नहीं सकता,

जुज़ तेरे कोई राहत ए दिल राहत ए जाँ और
ऐ राहत ए दिल राहत ए जाँ हो नहीं सकता,

पुरनम अभी अरमाँ हैं बहुत ख़ाना ए दिल में
ख़ाली ये मकीनों से मकाँ हो नहीं सकता..!!

~पुरनम इलाहाबादी

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