तेग़ ए जफ़ा को तेरी नहीं इम्तिहाँ से रब्त
तेग़ ए जफ़ा को तेरी नहीं इम्तिहाँ से रब्त मेरी सुबुकसरी को है बार ए गराँ से रब्त,
तेग़ ए जफ़ा को तेरी नहीं इम्तिहाँ से रब्त मेरी सुबुकसरी को है बार ए गराँ से रब्त,
ख़ामोश इस तरह से न जल कर धुआँ उठा ऐ शम्अ कुछ तो बोल कभी तो ज़बाँ उठा,
मुश्किल है पता चलना क़िस्सों से मोहब्बत का अंदाज़ा मुसीबत में होता है मुसीबत का, है नज़अ के
है आम अज़ल ही से फ़ैज़ान मोहब्बत का इम्कान मुसल्लम है इम्कान मोहब्बत का, तोड़ा नहीं जा सकता
कुछ देर काली रात के पहलू में लेट के लाया हूँ अपने हाथों में जुगनू समेट के, दो
कर्ब चेहरे से मह ओ साल का धोया जाए आज फ़ुर्सत से कहीं बैठ के रोया जाए, फिर
तुम से मिलते ही बिछड़ने के वसीले हो गए दिल मिले तो जान के दुश्मन क़बीले हो गए,
नींद से आँख खुली है अभी देखा क्या है देख लेना अभी कुछ देर में दुनिया क्या है,
ज़मीं पे चल न सका आसमान से भी गया कटा के पर को परिंदा उड़ान से भी गया,
अब तो शहरों से ख़बर आती है दीवानों की कोई पहचान ही बाक़ी नहीं वीरानों की, अपनी पोशाक