वो जानता ही नहीं है कि मुफ़्लिसी क्या है ?
वो जानता ही नहीं है कि मुफ़्लिसी क्या है ?गुज़र रही है जो मुश्किल से ज़िन्दगी क्या है
वो जानता ही नहीं है कि मुफ़्लिसी क्या है ?गुज़र रही है जो मुश्किल से ज़िन्दगी क्या है
जब भी सोचा कभी अपना तो हमारा सोचा क्या मिला और हुआ कितना ख़सारा सोचा ?बाद मुद्दत के
तुझे इस क़दर है शिकायतेंकभी सुन ले मेरी हिकायते, तुझे गर न कोई मलाल होमैं भी एक तुझसे
ख़रीद कर जो परिंदे उड़ाए जाते हैंहमारे शहर में कसरत से पाए जाते है, मैं देख आया हूँ
मिल के तुमको छोड़ दे कोई मज़ाक थोड़ी है हम दोनों जो मिले हैये इत्तेफ़ाक थोड़ी है, मिल
मुहब्बत की झूठी अदाओं पे साहबजवानी लुटाने की कोशिश न करना, बड़े बेमुरौत होते है ये हुस्न वालेकही
किसी की आँखों में ऐसा कभी ख़ुमार न थाकि जिसका सारे जहाँ में कोई उतार न था, न
मंज़िल पे न पहुँचे उसे रस्ता नहीं कहतेदो चार क़दम चलने को चलना नहीं कहते इक हम हैं
मुझे गुमनाम रहने काकुछ ऐसा शौक है हमदमकिसी बेनाम सहरा मेंभटकती रूह हो जैसे, जहाँ साये तरसते होकिसी
इख़्तियार ए संजीदगीअक्सर जवानी उजाड़ देती है रवानी ए ज़िन्दगी कोवहशत उजाड़ देती है, एक छोटी सी गलती