मैंने तुम्हे कितना सोचा ज़रीन कभी सोचा तुमने..
इश्क़ सहरा है कि दरियाँ कभी सोचा तुमनेतुझसे क्या है मेरा नाता कभी सोचा तुमने ? हाँ मैं
इश्क़ सहरा है कि दरियाँ कभी सोचा तुमनेतुझसे क्या है मेरा नाता कभी सोचा तुमने ? हाँ मैं
हम शज़र से नहीं साये से वफ़ा करते हैयही है वजह कि हम लोग दगा करते है, हम
वो दौर और था वो महबूबा और थीजिनके आशिको को इश्क़ में मुक़ाम मिला है ये दौर और
कल यूँ ही तेरा तज़किरा निकलाफिर जो यादो का सिलसिला निकलालोग कब कब के आशना निकलेवक़्त कितना गुरेज़
आँख से फिर न बहेगा दिल ए बर्बाद का दुःखजब परीजाद समझ लेगी अनाज़ाद का दुःख याद करता
लम्हे लम्हे के सियासत पर नज़र रखते हैहमसे दीवाने भी दुनियाँ की ख़बर रखते है, इतने नादान भी
बहुत रोया वो हमको याद कर केहमारी ज़िन्दगी बर्बाद कर के, पलट कर फिर यही आ जाएँगे हमवो
किसी रोज़ शाम के वक़्तसूरज के आराम के वक़्तमिल जाए जो साथ तेराहाथ में ले कर हाथ तेरादूर
जिसको देखो वही इक्तिदार चाहता हैयार चाहता है प्रोटोकॉल मर्ज़ी का, हर कोई चाहता है बनना सियासतदाँसियासत की
ये लाल डिबिया में जो पड़ी है वो मुँह दिखाई पड़ी रहेगीजो मैं भी रूठा तो सुबह तक