अपने लिए रहा कभी उस के रहा ख़िलाफ़
मेरा मिज़ाज सब के लिए एक सा ख़िलाफ़,
ऐसे भी यार होता है कोई भला ख़िलाफ़
होती है जूँ चराग़ के यारो हवा ख़िलाफ़,
हम लोग करते आए हैं उसकी मुख़ालिफ़त
किस के हुआ है आज तलक वो ख़ुदा ख़िलाफ़,
आईना नाक़िसों को दिखाया है जब कभी
फिर कैसे कैसे हो गए हैं पारसा ख़िलाफ़,
मैंने कहा कि इश्क़ इबादत है दोस्तो
मुझ बा वफ़ा से हो गए सब बेवफ़ा ख़िलाफ़,
सच बोल के बता तुझे इरशाद क्या मिला
सब आश्ना ख़िलाफ़ हैं ना आश्ना ख़िलाफ़,
इरशाद देखिए तो मेरे साथ है मगर
कम्बख़्त वो हमेशा ही मेरे रहा ख़िलाफ़,
इरशाद साथ रहते हैं बन कर जहाँ में दोस्त
दुश्मन हुए हैं जब से हुई है हवा ख़िलाफ़..!!
~इरशाद अज़ीज़

























